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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :235
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :978-81-8143-985

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...

सुन्दरी


ऐंटी एजिंग, एक्सफलिएटर्स, आइ ब्राउज़, आइ लाइनर्स, आइ शैडो, बेस मेकअप, ब्लश, कन्सीलर, एल्युमिनेटर्स, लिप ग्लॉस, लिप लाइनर्स, लिपस्टिक, नेलपॉलिश-इस किस्म की हज़ारों सामग्रियाँ आज बाज़ार में क्यों हैं? किनके इस्तेमाल के लिए? इसका जवाब हम सभी जानती हैं। औरतों के लिए! मेरा सवाल है औरतों को ये सब प्रसाधन क्यों इस्तेमाल करने होते होंगे? औरतों को चेहरे पर ये सैकड़ों रंग-रोगन पोत कर अपना असली चेहरा छिपाने की क्या ज़रूरत है? एक नकली चेहरा क्यों गढ़ना होगा? नकली आँखें, नकली होठ, नकली गाल? ये तमाम प्रसाधन सामग्रियाँ औरतें इस्तेमाल करती हैं क्योंकि अपने असली चेहरे के बारे में वे कुंठा की शिकार हैं। उन लोगों में यह हीन भावना, यह कुंठा आखिर किसने जगाई? किसने बताया कि हर औरत के चेहरे में कोई-न-कोई दोष, कोई त्रुटि है इसलिए सैकड़ों तरह के मेकअप लगा कर, उस चेहरे को त्रुटियुक्त करना होगा? अगर उन लोगों ने अपना-अपना चेहरा त्रुटियुक्त कर लिया तो उन्हें खूबसूरत सुन्दरी कहा जायेगा।

औरतें तटस्थ रहती हैं। ये लोग खाना बन्द कर देती हैं क्योंकि खाने से देह मुटिया जायेगी। देह के किसी भी अंग पर मोटापा न जमने दिया जाये। छाती का माप इतना हो, कमर इतनी, पेट इतना, नितम्ब ऐसा, जाँघे ऐसी-अंग-अंग का माप निर्धारित कर दिया गया है। अपने को उस माप के अनुकूल बनाने के लिए वे लोग पगला उठी हैं कि खाना देखते ही डर जाती हैं। खाना न खा-खा कर, बहुत-सी औरतें आज एनेरिक्सिया और बुलिमिया रोग झेल रही हैं। औरतों के शरीर का आकार-आकृति और अंग-प्रत्यंग का क्या माप होना चाहिए, यह नियम किसने तैयार किया? कौन लोग हैं जो औरतों की माप-जोख के अंकों से कर रहे हैं? कौन लोग हैं, जो कह रहे हैं कि औरत के शरीर को किसी माप के साँचे में न डाला तो वह शरीर हरगिज़ सुन्दर नहीं हो सकता। कौन लोग कहते हैं कि वह औरत सुन्दर नहीं है?

औरतों के शरीर को ले कर समूची दुनिया ही चिन्तित हो उठी है। उन लोगों . की पोशाकों और अलंकारों का कहीं कोई अन्त नहीं है। चारों तरफ़ साज-श्रृंगार की धूम। शरीर को सजाये रखो सिर के बालों से ले कर पाँवों के नाखून तक बस, सजी रहो। यह पहनो। वह लगाओ। अपना अंग-अंग खिला-खिला, जगमग और सतेज रखो। लेकिन क्यों? किसके लिए? औरतें क्या एक बार भी सोचती हैं कि किसके लिए? किसे तृप्त और तुष्ट करने के लिए? बहुत-सी औरतें निहायत ज़ोर दे कर कहने की कोशिश करेंगी कि-अपने लिए। वे लोग अपने लिए ही सजती हैं। अपने को ही सुन्दर लगें, यही असली बात है। ऐसा तो बस लगता है। लेकिन भला लगने या न लगने का ख़याल जागने के पीछे अर्से की तालीम होती है, इस बात से भला कौन इनकार करेगा? औरत को साज-शृंगार कराने के इतिहास से भला कौन इनकार करेगा?

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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